विश्वास
धूसर और मटमैला
परियाँ सपनों में चंदोवे नहीं तानती
स्याह सन्नाटा डराता है
छोटे कच्ची भीतों
में फैली है रेत
तीखी धूप से सँवलाए चेहरे
खोजते हैं अपना आज का जीवन
कल तक साँस चलते रहने के लिये
एक रेगिस्तानी स्याह विस्तार
दिशाओं में उमड आता है।
फिर भी चलते हैं कफिले
जीवन के विश्वास में
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