उन दिनों में
पुरानी गलिया हैं
तंग दरवाजे
आकाश की झिर्रियों से झलकती हैं यादें
एक खिड्की है अभिलाषा सी
चंद अफवाहें
दोपहर की चटख धूप
पुरानी किताब में लिखी हुई कविता
और तुम्हारा नाम
गुनगुनी सी हो उठी है
जाडों की यह शाम
पुरानी गलिया हैं
तंग दरवाजे
आकाश की झिर्रियों से झलकती हैं यादें
एक खिड्की है अभिलाषा सी
चंद अफवाहें
दोपहर की चटख धूप
पुरानी किताब में लिखी हुई कविता
और तुम्हारा नाम
गुनगुनी सी हो उठी है
जाडों की यह शाम
आकाश की झिर्रियों से झलकती हैं यादें...
ReplyDeleteवाह... क्या खूब !!
कविता बहुत अच्छी लगी..
nice!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता है ॥ सचमुच ॥
ReplyDeleteकभी कभी सचमच अच्छा लिख लेती हैं आप.
ReplyDelete