हिन्दी उपन्यास लेखन में महिला लेखिकाओं ने सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। मन्नू भंडारी, प्रभा खेतान,मैत्रेयी पुष्पा,चित्रा मुद्गल , मधु काँकरिया इत्यादि ने अपने विभिन्न उपन्यासों में इस आधी दुनिया की समस्याओं, आशाओं आकाँक्षाओं एवं विडम्बनाओं केे साथ.साथ मुक्ति की वास्तविक चेतना को अभिव्यक्त किया है।
सलाम आखिरी में देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं के उत्पीड़न शोषण एवं उनके दर्दनाक अंत को सामने लाने के लिए उपन्यास लेखिका ने स्वयं कलकत्ते के सोनागाछी ,कालीघाट,बहू बाजार,बैरकपुर,खिदिरपुर आदि को नजदीक से देखने का प्रयत्न किया है। स्वाधीनता, समानता एवं विवेकसम्पन्न चेतना के तमाम दावों के बावजूद नारी देह शोषण के अनगिनत तरीके आज भी समाज में मौजूद हैं। उपन्यास के केन्द्र में भीषण निर्धनता , अपहरण या धोखे से बेच दी गयी या वेश्या की संतान होने के कारण इस बजबजाते नरक को झेलने के लिए अभिशप्त अवयस्क एवं वयस्क वेश्याएँ हैं। उपन्यास में उन कारणों की भी पड़ताल की गयी है जिनसे मजबूर होकर ये स्त्रियाँ देह बेचने को अभिशप्त हैं। लेखिका समानांतर रूप से सट्टा बाजार एवं रातों रात धनकुबेर बन जाने के लिए आम आदमी के सपनों एवं जीवन से खिलवाड़ करने वाले वर्ग की असलियत को भी उजागर करती है। इस भयंकर निराशा एवं जुगुप्सा उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों के बीच भी तरह इन्द्राणी दी, सुर्कीति ,गायत्री, चन्द्रिका जैसे पात्र हैं जो नीलकंठ की भँाति हलाहल पान कर जीवन की आशा को बचाए रखने के लिए प्रयासरत है। उपन्यास के त्रासद अनुभव से गुजरना तथाकथित नैतिकता की एवं खुद के भीतर की मनुष्यता की पहचान करने जैसा है।
कलपना पंत
सलाम आखिरी में देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं के उत्पीड़न शोषण एवं उनके दर्दनाक अंत को सामने लाने के लिए उपन्यास लेखिका ने स्वयं कलकत्ते के सोनागाछी ,कालीघाट,बहू बाजार,बैरकपुर,खिदिरपुर आदि को नजदीक से देखने का प्रयत्न किया है। स्वाधीनता, समानता एवं विवेकसम्पन्न चेतना के तमाम दावों के बावजूद नारी देह शोषण के अनगिनत तरीके आज भी समाज में मौजूद हैं। उपन्यास के केन्द्र में भीषण निर्धनता , अपहरण या धोखे से बेच दी गयी या वेश्या की संतान होने के कारण इस बजबजाते नरक को झेलने के लिए अभिशप्त अवयस्क एवं वयस्क वेश्याएँ हैं। उपन्यास में उन कारणों की भी पड़ताल की गयी है जिनसे मजबूर होकर ये स्त्रियाँ देह बेचने को अभिशप्त हैं। लेखिका समानांतर रूप से सट्टा बाजार एवं रातों रात धनकुबेर बन जाने के लिए आम आदमी के सपनों एवं जीवन से खिलवाड़ करने वाले वर्ग की असलियत को भी उजागर करती है। इस भयंकर निराशा एवं जुगुप्सा उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों के बीच भी तरह इन्द्राणी दी, सुर्कीति ,गायत्री, चन्द्रिका जैसे पात्र हैं जो नीलकंठ की भँाति हलाहल पान कर जीवन की आशा को बचाए रखने के लिए प्रयासरत है। उपन्यास के त्रासद अनुभव से गुजरना तथाकथित नैतिकता की एवं खुद के भीतर की मनुष्यता की पहचान करने जैसा है।
कलपना पंत
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