परीक्षा कक्ष में
परीक्षार्थी सी इधर-उधर झाँकती चेतना
सवाल पूछती
है....... अल्फा, थीटा, गामा और
समुन्दरों में आए
अप्रतिहत तूफानों के
कक्ष निरीक्षक सी घूमती हैं चारों ओर
निरन्तर
दो जोडी आँखें !
... जिन्दगी के कक्ष के ऊपर घूमता
रंग उडा
दुनियावी पंखा
अपनी गति से....
दीवारों पर टंगे
लाइफ साइकिल के
चार्ट बासी हो गये हैं
फार्मेलीन में डूबे हुए जीव उचककर
बाहर आने
को आतुर हैं
सोचती हूँ खोल दूँ
उनके बन्धन
और स्वप्न लोक से
निकल आऊँ!
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