Thursday, September 27, 2012

अपराजित

सागर तट पर रेत में उसे
लकीरें खींचती
नन्हीं
नहीं जानती......
उमडेगा
सागर!
लहरें
उचकती कूदती
मिटाती जाती हैं
रेत का घर बनाती

तुम मुस्कुराती हो...
तुम्हारी मुस्कुराहट पर
इठ्लाता है सागर
तुम्हारी मुस्कुराहट पर उमड आता है
एक संगीत का समाँ बँध जाता है....

सूरज निकलता है
एक नन्हीं तख्ती के सहारे
वि्स्तीर्ण समन्दर में
खेलते हैं...........
नन्हे मचुआरे
लाल सूरज की दमकती
रोशनी में ...
खुशी से दमकती ....
....तुम.....
सदा
अपराजित रहना !!!

2 comments:

  1. Prabhat Upreti यही तो कमाल है भाव ही प्रकृित है

    ReplyDelete