Friday, April 19, 2013

खुद में खुद को पा जीने की ताकत आयी है

बहुत सालों बाद कोई दस्तक वहाँ से आयी है
पर खामोश है हम क्योंकि तन्हाई की आदत पायी है
कभी एक दिल था अब दर्दे जिगर हुआ
इक जख्म था अब नासूर की सूरत पाई है
इन दिनों तन्हाई ही हमें सुहाई है......
अब सफर है कारवाँ है मन्जिल की उम्मीद भी है
पर मन्जिल को पाने की ह्ठ हमने बिसराई है.
भरी है मश्क और सामने दरिया भी है
पर सवार को अब धुन कोई और समाई है
यूँ ही सब्र है सुकून है और बेपरवाही है
खुद में खुद को पा जीने की ताकत आयी है
         कल्पना

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