Friday, January 12, 2018

दरख़्वास्त

कोई हमारे शहर में रहगुज़र तो करे,
मुनादी बहुत हुई अब ख़बर तो करे।

कहने को तो बहुत हैं तरफदार अपने ,
कोई सही में दोस्ताना नज़र तो करे।

राहों में बहुत से मका़म आए भी गए भी
अब कोई कहीं सच में बसर तो करे।

हमसे हैं तुम्हारे हमराही कई -कई ,
अब कोई हम संग भी सफ़र तो करे।

नाराजगी बहुत हुई  ग़ुरबत के लिए ,
अब कोई अंज़ाम-ए-सितमग़र तो करे।
कल्पना

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