Saturday, August 13, 2011

ओएसिस

उन आँखों में
एक दरिया है
आश्व्स्त करता है
हमेशा
व्यथा और
अन्तहीन लडाईयों
के रेगिस्तानी सिलसिलों
के बीच
चंद लम्हे ऐसे भी हैं
जिनमें
जीवन की नदी
बहती है
अपने किनारों
पर लिये हुए
कई खरपतवारों
काई सेवारों के
लाव लश्कर
पर खुद ही सह्ती है
रेत और रेत का विस्तार
जिनको छूती है
ओएसिस ही देती है।

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