Sunday, October 7, 2012

आरजू

शहर की बत्तियाँ उलझी हुई है
इस सोच में
रात क्या सोचती है
याद के जानिब
सफर के वक्त
उलझे सिलसिलों सी
जिन्दगी एक
फलसफा है
रात की तन्हाइयों में
सुबह एक झनकार सी है
वक्त की
सोचती आज कह दूँ
जिन्दगी की रूह से मैं
कभी उजडे, कभी टूटॆ
कभी सँवरे,कभी रूठे
आरजू है बस यही
ए जिन्दगी तुझसे
भरोसा न टूटे
कल्पना

3 comments:

  1. जिन्दगी एक
    फलसफा है
    रात की तन्हाइयों में
    सुबह एक झनकार सी है...ye jhankar si subah hi jindagi main ek ummeed aur ek naya savera lati hai. poori ki poori shayari hi bahut sunder hai...

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  2. एक पोजीटिव कविता. आरजू जरूर है पर इरादों की मजबूती जाहिर करते हुए.
    शहर की अजनबी बत्तियों का सन्दर्भ सार्थक लगा.

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