शहर की बत्तियाँ उलझी हुई है
इस सोच में
रात क्या सोचती है
याद के जानिब
सफर के वक्त
उलझे सिलसिलों सी
जिन्दगी एक
फलसफा है
रात की तन्हाइयों में
सुबह एक झनकार सी है
वक्त की
सोचती आज कह दूँ
जिन्दगी की रूह से मैं
कभी उजडे, कभी टूटॆ
कभी सँवरे,कभी रूठे
आरजू है बस यही
ए जिन्दगी तुझसे
भरोसा न टूटे
कल्पना
wah,bahut khub.....
ReplyDeleteजिन्दगी एक
ReplyDeleteफलसफा है
रात की तन्हाइयों में
सुबह एक झनकार सी है...ye jhankar si subah hi jindagi main ek ummeed aur ek naya savera lati hai. poori ki poori shayari hi bahut sunder hai...
एक पोजीटिव कविता. आरजू जरूर है पर इरादों की मजबूती जाहिर करते हुए.
ReplyDeleteशहर की अजनबी बत्तियों का सन्दर्भ सार्थक लगा.