घनघोर बारिशों के बीच किसी खुले दिन
धूप मेरे घर की खिड्कियों पर आ जाती है
समय के बहते गधेरे में एक राह निकल आती है
उदासियाँ सुरमई धूप की उस नदी में बह जाती हैं
यह सच है कि अंधेरा है
यह सच है कि बुझा-बुझी सा सवेरा है
मन में शंकाओं की बडी आँधी है
फिर भी इक धूप है जो राह दिखा जाती है
कल्पना
धूप मेरे घर की खिड्कियों पर आ जाती है
समय के बहते गधेरे में एक राह निकल आती है
उदासियाँ सुरमई धूप की उस नदी में बह जाती हैं
यह सच है कि अंधेरा है
यह सच है कि बुझा-बुझी सा सवेरा है
मन में शंकाओं की बडी आँधी है
फिर भी इक धूप है जो राह दिखा जाती है
कल्पना
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