Monday, January 1, 2018

जायरा वसीम और स्त्री विमर्श

बरसों पहले की घटना है, एक लड़की ट्रेन में सफर कर रही थी, मिडिल बर्थ थी. आधी रात का समय था, ट्रेन में लोग सोये हुए थे. लड़की भी नींद में थी. अचानक उसे महसूस हुआ, कोई उसे छू रहा है, वह हिली, लगा सपना देख रही है-लेकिन यह क्या बुरा लगने वाला फिर वही हाथ. आँख खुली देखा बर्थ के सामने एक आदमी खड़ा हुआ है गुस्से में लड़की ने उसे एक थप्पड़ लगा दिया.
वह गुर्राने लगा. आसपास के लोग उठ गये. लेकिन कोई कुछ नही़ बोला. किस्मत अच्छी थी .वह आदमी वहाँ से हट गया, नहीं तो न जाने क्या होता? वह लड़की मैं थी.
   मेरी नौकरी लगे छ:महीना ही हुआ था, उसके बाद भी एक दो घटना में एक बार बत्तमीजी़ करने वाले को थप्पड़ लगाने के बाद मैं अकेले पड़ गयी और  डर कर ट्रेन से कूद गयी. गनीमत यह थी जहाँ कूदी वह शहर था और समय सुबह का. घुटने बुरी तरह छिले पर जान बच गयी, बस पकड़ आगे की यात्रा की.
          यह सब मैं इस लिए लिख रही हूँ कि जायरा वसीम वाली घटना पर बहुत से लोगों ने बहुत लिखा है, एक डरावना अनुभव मेरा भी--------------
 आज मेरी बेटी भी जायरा की उम्र की है, मैं क्या उसे कहूँगी कि वह  सहयात्रियों पर भरोसा कर सकती है?
कल्पना

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