Wednesday, August 31, 2011

अन्धेरे के खिलाफ

अंधेरा अंधेरा
बुद्धजीवी चिल्लाता है
चिन्तातुर होकर
काउच पर धँसकर
वाइन की चुस्कियाँ
लेता हुआ
अर्धनग्न देह के
पोस्टर
देखता
ललचाता है
कभी सत्ता के गलियारों में बेचैन
पुरस्कारों की होड़ में       
घूमता
रिरियाता है
अंधेरे के खौफनाक मंजर
को दूर करने के लिये
विज्ञापनों में देख
कई कंदीलें अपनी
चहारदीवारी में
सजाता है
दो चार पुरस्कार पाकर
विदेश यात्राओं
से आकर
सोचता है
अंधेरा
छंट रहा है।
नहीं जानता
उसकी परिधि
के बाहर अंधेरे
के खिलाफ
लड़ रहे हैं
कई बेनाम
अपने.अपने
मोर्चों पर
मुट्ठी भर
उम्मीद में
कल के
लिये

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