अंधेरा अंधेरा
बुद्धजीवी चिल्लाता है
चिन्तातुर होकर
वाइन की चुस्कियाँ
लेता हुआ
अर्धनग्न देह के
पोस्टर
देखता
ललचाता है
कभी सत्ता के गलियारों में बेचैन
पुरस्कारों की होड़ में
घूमता
रिरियाता है
अंधेरे के खौफनाक मंजर
को दूर करने के लिये
विज्ञापनों में देख
कई कंदीलें अपनी
चहारदीवारी में
सजाता है
दो चार पुरस्कार पाकर
विदेश यात्राओं
से आकर
सोचता है
अंधेरा
छंट रहा है।
नहीं जानता
उसकी परिधि
लड़ रहे हैं
मोर्चों पर
मुट्ठी भर
उम्मीद में
कल के
बुद्धजीवी चिल्लाता है
चिन्तातुर होकर
काउच पर धँसकर
लेता हुआ
अर्धनग्न देह के
पोस्टर
देखता
ललचाता है
कभी सत्ता के गलियारों में बेचैन
पुरस्कारों की होड़ में
घूमता
रिरियाता है
अंधेरे के खौफनाक मंजर
को दूर करने के लिये
विज्ञापनों में देख
कई कंदीलें अपनी
चहारदीवारी में
सजाता है
दो चार पुरस्कार पाकर
विदेश यात्राओं
से आकर
सोचता है
अंधेरा
छंट रहा है।
नहीं जानता
उसकी परिधि
के बाहर अंधेरे
के खिलाफलड़ रहे हैं
कई बेनाम
अपने.अपनेमोर्चों पर
मुट्ठी भर
उम्मीद में
कल के
लिये
No comments:
Post a Comment