Monday, August 8, 2011

उच्च शिक्षा एवं भविष्य दॄष्टि-२

उच्च शिक्षा एवं भविष्य दॄष्टि-२
 भारत में उच्च शिक्षा सर्वाधिक उपेक्षित है । हमारे बहुत से संस्थान भविष्य के उद्देश्यों की पूर्ति कर पाने में सक्षम नहीं हैं। राजनीतिक दलों द्वारा अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए विवेकहीन तरीके से महाविद्यालय और विश्व्विद्यालय खोल दिये जाते हैं लेकिन बिना भवनों के कहीं किराये के कमरों में .कहीं सीलन से भरे एक दो कमरों में केवल एक दो प्राध्यापकों के सहारे घिसटते ये तथाकथित महविद्यालय उच्च शिक्षा के विकास के दावों की कलई खोल के रख देते हैं। अधिकांश में शिक्षा के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है। वहाँ से हर साल ऎसे स्नातक और परास्नातक निकलते हैं जिनके लिये आगे कोई राह नहीं दीखती। उन्हें न तो विषय की बेहतर समझ होती है और न ही कोई ऎसा तकनीकी कौशल विकसित हो पाता है जिससे वे अपने जीवन स्तर को बेहतर बना सकें। इस तरह की अनुपयोगी शिक्षा देश की एक बडी आबादी को छलने के सिवाय और क्या है ?

1 comment:

  1. आपने एकदम सही कहा है। वास्तव मेँ आज जो शिक्षा युवावर्ग को दी जा रही है वो आज के परिवेश मेँ एकदम अनुपयोगी है। आज आवश्यकता है रोजगारपरक शिक्षा की जिसके लिए तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। इसी मेँ वर्तमान शिक्षा की सार्थकता है।

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