Monday, September 5, 2011

अनकही

सूरज ठीक
सिर के ऊपर  है
धूप के डम्पर खाली करता हुआ
वाहनों की रेलमपेल के बीच
अपने लिए थोडी सुस्ताने की जगह तलाशती
क्रराह्ती है सडक
अनगिन घाव सीने पर
कहाँ की मरहम पट्टी
धूल के थमे गुबार सा
बजबजाती भीड में
फीलपाँव लिये
एक हाथ से सहारा लेने की कोशिश करता
दूसरा हाथ रोटी के लिये फैलाता
आम आदमी!
दौडती दुनिया में एक  बच्चा
कान मै सैलफोन लिये
अपने पिता से  मँह्गी कारों के लिये झगडता है
पिता मुस्कुराता है
थोडा अचकचाता है
और पिता को याद कर उदास हो जाता है
पिता की साइकिल पर बैठे
दूर तक नजर आते खेत
अरहर के
शरीफे के पेड
बह्ती गूल
और टोकरी भर कच्चे आम
छूट जाती एक पगडंडी
दूर कहीं दूर कहीं दूर.................................

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