Wednesday, January 25, 2012

क्या सुबह को भी याद हैं वे दिन जब सपने उतरे थे

मैने कल उगते सूरज को देख एक चित्र बुना था
आसमान गहरा नीला था
पेडों पर पत्ते काँप रहे थे
क्या सुबह को भी याद हैं वे दिन
जब सपने उतरे थे
 हमने ढेर सारी बचकानी बातें कीं थीं
और खूब हंसे थे
उजली धरती की वह शामें
आकाश का वह आँगन
वक्त का वह एक एक लम्हा
गर्मी की वह दुपहर
दोस्ती के पल
क्या तुम्हें भी याद हैं?













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