कागज उडते हैं या हम बिखरते
हैं
अपनी खामोशी की आवाजें सुनते हैं
बाहर कोई बोलता है
..........आवाज दिल तक नहीं पहुँचती
.सपने बोलते हैं और दिन छ्लावा देता है .
अन्दर से कोइ लगातार आवाज देता है
कोई साया हमेशा साथ चलता है
छूने की कोशिश में कुछ हाथ नहीं आता
रात अपने हस्ताक्षर करती जाती है
और फिर एक दिन यूँ ही गुजर जाता है
और चिन्दी- चिन्दी हम..................
फिर बिखरे कागजों को समेटने लगते हैं .
अपनी खामोशी की आवाजें सुनते हैं
बाहर कोई बोलता है
..........आवाज दिल तक नहीं पहुँचती
.सपने बोलते हैं और दिन छ्लावा देता है .
अन्दर से कोइ लगातार आवाज देता है
कोई साया हमेशा साथ चलता है
छूने की कोशिश में कुछ हाथ नहीं आता
रात अपने हस्ताक्षर करती जाती है
और फिर एक दिन यूँ ही गुजर जाता है
और चिन्दी- चिन्दी हम..................
फिर बिखरे कागजों को समेटने लगते हैं .
No comments:
Post a Comment