कभी-कभी मुझे लगने लगा है इस समाज में सबसे बडा गुनाह है -स्त्री होना ....जिसकी कोइ माफी नहीं....आप अपनी जिन्दगी तो जी ही नहीं सकते...इससे सब स्त्रियाँ गुजरती हैं....चाहे वह कलाकार हो .....या.... मैं इस समाज से स्त्री को किसी तरह नीचा दिखाने की साजिश से नफरत करती हूँ.............. वंदनाजी! मुझे लगता था .नफरत शब्द मेरे शब्द्कोश में नहीं है मुझे लगता था नफरत हो ही नहीं सकती....पर होती है ....दिल पर गहरी चोट लगती है....जब स्त्री को झुकाने की कोशिश होती है उसका अपमान होता है...जब कोइ तकलीफ देकर खुश होता है....तो नफरत होती है...इसीलिये इतना गुस्सा है....काश !मेरे पास तीसरा नेत्र होता...............
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