Wednesday, March 6, 2013

शब्द पर शब्द बरसते रहे और मैं शब्दों के सिरहाने सो गयी. सुबह उठी तो शब्दों ने होले से मुझे और मैं जान गयी कि मुझे शब्दों की दुनिया से किन शब्दों को चुनना है, गुनना है और फिर बुनना है.जान गयी कि मुझे क्या करना है. अजीब दिन हैं. दुनिया अजीब तरह के षड्यंत्रों का जाल बुनती है. दोस्तों के चेहरों पर मुखौटे नजर आते हैं . फिर भी मैं मुस्कुराती हूँ तपाक से हाथ मिलाती हूँ. कितनी बनावट और जियूँगी मैं.मेरी पीठ पर कटार है और तिसपर भी कटार रखने वाले के लिये मेरे चेहरे पर एक मीठी मुस्कान है और कटार रखने वाले का चेहरा बीमार है. वाह सब बाजारहै वाह सब बाजार है...................

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