Friday, March 9, 2018

माँ

माँ  ओ माँ

समय की  नदी  में  देखती  हूँ  प्रतिबिंब
झिलमिलाता  है अक्स तुम्हारा ;;;;;
दिखता है चेहरा मेरा
तुम्हारे  रूप में समा गया है
अक्स मेरा ______

वही  तुम्हारी  चिंताएँ
वही इच्छाएँ
मेरा झुंझलाना
तुम्हारा  मनाना
(         )

हमारे लिए
रात - रात भर जगना
अनवरत  दौड़ना
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धीमे से  टाँगना सपने
हमारी  आँखों  में
(अपने  सपनों  को  भूलकर)
हमारी नजरों  से नीला आकाश  आँकना

अब मैं  भी  रात -रात भर
बुनती  हूँ  बच्चों  के
ख्वाबों  की चादर
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पर जब भी  तुम मेरे पास होती हो
मेरे  सपने लौट आते  हैं
मेरे  बालमन के साथ
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कोई हठीली  बच्ची
मेरे  भीतर फिर
उतर आती  है
सम्पूर्ण राग के  साथ

कल्पना

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