Saturday, October 8, 2011

सार्थकता


शब्दों में अर्थ खोजते.खोजते
शब्द रह गये और अर्थ खो गया।
वे बड़े.बड़े ग्रन्थों से रटे शब्द
इतिहास पुराण और मिथकों से सीखे शब्द
जीवन के आगे निरुपाय हो गये।
माया, इंका, से लेकर सिंध तक
फारस से लेकर हिन्द तक
अर्थ खोजता बहुत ही आम आदमी
समझ नहीं पाता
रोटी के बदले
धर्म ,जाति में बँटकर,
 खु़श
हो जाता है।
फिर खोजता है................अर्थ
अर्थ खो गया?
शब्द रह गये,
अपनी पूरी सजधज में
इसलिये जीवन से लेकर शब्दों तक
शब्दों से चलकर कविता तक
एक रास्ता तलाशना है
क्योंकि कविता एक आकाश है
जिन्दगी चट्टान।

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