Monday, May 14, 2012

अपनी प्रिय सखी को श्रद्धांजलि



तुम जो अपनी शर्तों पर जीना चाह्ती थीं
तुम्हारी काली घनी बरौनियों में लहराता था जीवन
वर्जनाओं से लड्ने की असीम ताकत के साथ
तुम उतर आती थी खिली धूप की तरह
पूरा कारीडोर खिलखिला उठता था
तुम्हारी हँसी से
तुम्हारे परिधान में खिलते थे सतरंग
मर्लिन मुनरो से पामेला तक मिलती तुम्हें उपाधियाँ
... ... तुम सहज भाव से हँस देतीं
तुमसे घबराते थे भय
झील के किनारे स्कार्फ लहराती
किसे बुलाती थी तुम
सुनसान रास्तों पर उन्मुक्त घूमती
तुम आज कहाँ हो अनामिका!

No comments:

Post a Comment